राजस्थान का शाही श्मशान, जहां हजारों किलोमीटर दूर से आते हैं पर्यटक, 500 साल पुरानी छतरियां देख रह जाएंगे दंग
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राजस्थान का शाही श्मशान, जहां हजारों किलोमीटर दूर से आते हैं पर्यटक, 500 साल पुरानी छतरियां देख रह जाएंगे दंग

Oct 3, 2025

बीकानेर हवेलियों और जूनागढ़ किले की वजह से काफी प्रसिद्ध है. यहां राजा महाराजा से जुड़े कई महल, हवेलियां है जो पर्यटकों के लिए काफी आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं. आपने कई बार श्मशान गृह देखें होंगे, लेकिन कभी आपने शाही श्मशान देखा है, अगर नहीं देखा तो आज हम आपको शाही श्मशान के बारे में बताते है.

 

बीकानेर से 15 से 20 किलोमीटर देवीकुंड सागर गांव में बीकानेर राजघराने का शाही श्मशान है. इस श्मशान को देखने के लिए हर साल लाखों की संख्या में देशी और विदेशी पर्यटक आते है.

 

यह बीकानेर के राजा-महाराजाओं का श्मशान है. यह श्मशान करीब 500 साल से अधिक पुराना है. राजपरिवार की ओर से संचालित ट्रस्ट की ओर से ही इन छतरियों की देखभाल की जाती है. बीकानेर रियासत के राजपरिवार के सदस्यों का अंतिम विश्राम स्थल के रूप में देवीकुंड सागर की पहचान है. इस मोक्ष धाम में राज परिवार के किसी भी सदस्य के निधन के बाद उनकी अंत्येष्टि यहीं की जाती रही है. अंत्येष्टि के बाद उसी स्थान पर एक छतरी का निर्माण करवाया जाता है.

 

इस मोक्ष धाम में बीकानेर रियासत के शुरुआती दो या तीन महाराजाओं को छोड़कर सभी राजाओं और राज परिवार के किसी भी सदस्य के निधन के बाद उनकी अंत्येष्टि यहीं की जाती रही है. आज भी यह परंपरा कायम है. यहां करीब 300 से 400 छतरियां बनी हुईं है.

 

जानकारी के अनुसार यहां बीकानेर के शासक राव कल्याणमल (1542-71 ई.) से लेकर महाराजा करणीसिंह (1950-88 ई.) तक के राजाओं, रानियों तथा राजपरिवार के सदस्यों की स्मृति-परक छतरियां दो समूहों में निर्मित है

इनमें प्रारंभिक शासकों की छतरियों में दुलमेरा का लाल पत्थर तथा बाद की छतरियों में सफेद संगमरमरी पाषाण प्रयुक्त हुआ है. छतरियों में महाराजा अनूपसिंह 1669-98 ई. की छतरी वास्तुशिल्प एवं नक्षणकला की दृष्टि से उल्लेखनीय है. 16 स्तंभों पर अवलम्बित इस छतरी में कृष्णलीला सहित लतापत्रों तथा मयूर आदिपक्षियों का सुन्दर तक्षण हुआ है. छतरियों में चित्रांकन की परम्परा का प्रारम्भ महाराजा रतनसिंह 1828-51 ई. की छतरी से देखने को मिलता है. कुछ छतरियों की शिलाओं पर अभिलेख भी खुदे हुए
पहले तो यहां हाथों से छतरी बनाई जाती थी. इसके लिए विदेशों से पत्थर मंगवाते थे और फिर यहां के कारीगर यह छतरी बनाते थे. बीकानेर रियासत के पांचवें राजा की छतरी यहां सबसे पहले बनी और उसके बाद राज परिवार के किसी भी सदस्य और राजा के निधन के बाद छतरी बनवाई जाती है. संगमरमर के साथ ही लाल पत्थरों की मुगलकालीन शैली में छतरियों का निर्माण हुआ. यहां छतरी के निर्माण के लिए विदेशों से पत्थर मंगवाते

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